May 25, 2010
May 24, 2010
May 23, 2010
May 21, 2010
May 19, 2010
May 15, 2010
May 8, 2010
मोहन राकेश
मोहन राकेश : एक परिचय
हिन्दी साहित्य के सुप्रसिद्ध नाटककार ,कहानी लेखक ,उपन्यासकार तथा निबंध लेखक श्रीमोहन राकेश जी का जन्म अमृतसर (पंजाब) के एक सुसंस्कृत परिवार में ८ जनवरी १९२५ को हुआ था। इनके बचपन का नाम मदन मोहन गुगलानी था। "राकेश" उपनाम उन्होंने बाद में अपनाया । राकेश के पिता श्री करमचंद गुगलानी पेशे से वकील तथा प्रकृति से साहित्यिक व्यक्ति थे ,उनकी बैठक में साहित्यकारों की मंडली जुटती थी । पंडित राधारमण जी के प्रभाव में आ कर राकेश ने कविता लिखनी प्रारम्भ कर दी । १९४१ को आप के पिता का देहांत हो गया । घर की आर्थिक अवस्था अच्छी न थी । घर को चलाने की पूरी जिम्मेदारी मोहन राकेश पर आ पड़ी।
मोहन राकेश ने लाहौर के ओरियंटल कॉलेज से संस्कृत में एम् .ए.की परीक्षा पास की और जालंधर से हिन्दी में एम्.ए .की परीक्षा पास की । राकेश स्वत्रंत प्रकृति के थे और अपनी शर्तो पर जीवन यापन के हिमायती थे। इसलिए इन्हे अनेक नौकरी करनी और छोडनी पड़ी । कुछ बर्षो तक इन्होने कॉलेज में अध्यापन का कार्य किया और इसी दौरान इन्होने व्वास्थित रूप से लिखना आरभ किया । इनकी कुछ पुस्तके काफी चर्चित रही -जिसमे इनके नाटको के अतिरिक्त इनकी डायरी भी है ।इसी दौरान उनका लेखन भी चलता रहा और लेखक राकेश जीवन की ,मन की ,और अपने खुलेपन की अनेक समस्यायों से जूझता रहा। एक के बाद दूसरे अनेक पडाव से गुजरती हुई राकेश जी की यह साहित्यिक ,यात्रा आधुनिक हिन्दी साहित्य का महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है।
राकेश जी के व्यावसयिक जीवन की तरह उनका पारिवारिक जीवन भी उथल -पुथल भरा रहा ,मोहन राकेश का पारिवारिक जीवनदुःख -सुख की धुप -छाव का मिश्रण था । राकेश जी को साहित्यिक संस्कार और कलात्मक रूचि के साथ -साथ ऋण ग्रस्तता भीविरासत में मिली थी । इनका वैवाहिक जीवन भी बिखराव की कहानी है। इन्होने तीन शादी की थी ,अंत में अनीता औलक के साथ हीइन्होने अपनी शेष जीवन व्यतीत किया।
मोहन राकेश का देहांत ३ दिसम्बर १९७२ को दिल्ली में अचानक हुआ । इस अल्पायु में इनके देहांत से हिन्दी साहित्य को बहुत हानिपहुँची।
रचना कर्म :
उपन्यास : अंधेरे बंद कमरे ,अन्तराल ,न आने वाला कल।
कहानी -संग्रह : क्वाटर तथा अन्य कहानिया ,पहचान तथा अन्य कहानिया ,वारिस तथा अन्य कहानिया
नाटक : आषाढ़ का एक दिन ,लहरों के राजहंस ,आधे -अधूरे ,
निबंध संग्रह : परिवे
हरिशंकर परसाई
श्री हरिशंकर परसाई जी मुख्यतः व्यंग -लेखक है,पर उनका व्यंगकेवल मनोरंजन के लिए नही है। उन्होंने अपने व्यंग के द्वारा बार-बारपाठको का ध्यान व्यक्ति और समाज की उन कमजोरियों औरविसंगतियो की ओर आकृष्ट किया है जो हमारे जीवन को दूभर बनारही है। उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचारएवं शोषण पर करारा व्यंग किया है जो हिन्दी व्यंग -साहित्य मेंअनूठा है। परसाई जी मूलतः एक व्यंगकार है । सामाजिकविसंगतियो के प्रति गहरा सरोकार रखने वाला ही लेखक सच्चाव्यंगकार हो सकता है। परसाई जी सामायिक समय का रचनात्मकउपयोग करते है। उनका समूचा साहित्य वर्तमान से मुठभेड़ करता हुआ दिखाई देता है। परसाई जीहिन्दी साहित्य में व्यंग विधा को एक नई पहचान दी और उसे एक अलग रूप प्रदान किया ,इसकेलिए हिन्दी साहित्य उनका हमेशा ऋणी रहेगा
Subscribe to:
Posts (Atom)