May 8, 2010
श्री हरिशंकर परसाई जी मुख्यतः व्यंग -लेखक है,पर उनका व्यंगकेवल मनोरंजन के लिए नही है। उन्होंने अपने व्यंग के द्वारा बार-बारपाठको का ध्यान व्यक्ति और समाज की उन कमजोरियों औरविसंगतियो की ओर आकृष्ट किया है जो हमारे जीवन को दूभर बनारही है। उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचारएवं शोषण पर करारा व्यंग किया है जो हिन्दी व्यंग -साहित्य मेंअनूठा है। परसाई जी मूलतः एक व्यंगकार है । सामाजिकविसंगतियो के प्रति गहरा सरोकार रखने वाला ही लेखक सच्चाव्यंगकार हो सकता है। परसाई जी सामायिक समय का रचनात्मकउपयोग करते है। उनका समूचा साहित्य वर्तमान से मुठभेड़ करता हुआ दिखाई देता है। परसाई जीहिन्दी साहित्य में व्यंग विधा को एक नई पहचान दी और उसे एक अलग रूप प्रदान किया ,इसकेलिए हिन्दी साहित्य उनका हमेशा ऋणी रहेगा
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